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प्रस्तावना
आभार प्रदर्शन एक महत्वपूर्ण मानव गुण है जो व्यक्ति को अपनी उपलब्धियों, स्वतंत्रता, और जीवन में प्राप्त हर छोटे-बड़े समर्थन को मान्यता देने के लिए प्रेरित करता है। 15 अगस्त का खास महत्व इसी आभार प्रदर्शन के संदर्भ में इतिहास और वर्तमान परिदृश्य को जोड़ता है। इस विशेष दिन, भारत के स्वतंत्रता संग्राम की शौर्यगाथाओं की याद दिलाई जाती है और समर्पण, त्याग एवं बलिदान का आभारी बनते हुए हम अपने राष्ट्र की समृद्धि और स्वतंत्रता का उत्सव मनाते हैं।
15 अगस्त 1947 को भारत ने ब्रिटिश शासकों से स्वतंत्रता प्राप्त की और यह दिन भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। इस दिन को भारतीय नागरिक अपने स्वतंत्रता सेनानियों के असीम त्याग और संघर्ष के प्रति आभार व्यक्त करने के रूप में मानते हैं। यह दिन न केवल राजनीतिक स्वतंत्रता का प्रतीक है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता का भी प्रतीक है।
इस दिन की विशिष्टता यही है कि यह हमें याद दिलाता है कि स्वतंत्रता की प्राप्ति केवल संघर्ष से ही नहीं, बलिदान और सामूहिक प्रयासों से भी संभव होती है। आज, 15 अगस्त आभार प्रदर्शन का दिन बन चुका है, जहां हम न केवल अपने पूर्वजों को नमन करते हैं, बल्कि वर्तमान और आगामी पीढ़ियों को भी स्वतंत्रता के महत्व का पाठ पढ़ाते हैं। इसे आभार के साथ मनाना उनकी मेहनत, संकल्प और समर्पण को स्वीकार करने और उनकी यादों को संजोने का सबसे उपयुक्त माध्यम माना जाता है।
इस प्रकार, 15 अगस्त के दिन आभार प्रदर्शन एक ऐसा स्वाभाविक क्रिया है, जो हमें हमारे इतिहास से जोड़ता है और भविष्य के लिए हमें प्रेरणा देता है। इस ऐतिहासिक दिन के माध्यम से हम न केवल स्वतंत्रता का उत्सव मनाते हैं, बल्कि इसके वास्तविक महत्व को भी समझते है।
स्वतंत्रता संग्राम के नायक
15 अगस्त भारत के लिए विशेष महत्व रखता है क्योंकि इसी दिन 1947 में देश को ब्रिटिश साम्राज्य से आजादी मिली थी। इस स्वतंत्रता संग्राम में अनेक नेताओं और योद्धाओं ने अपने जीवन का बलिदान दिया, जिनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण था। देश की आजादी के लिए अपने जीवन की आहुति देने वाले इन महान नायकों को स्मरण करना और उनके प्रति आभार व्यक्त करना हमारा कर्तव्य है।
महात्मा गांधी, जिन्हें ‘राष्ट्रपिता’ के रूप में जाना जाता है, स्वतंत्रता संग्राम के मुख्य प्रेरक थे। सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों पर आधारित उनके असहयोग आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन ने जनता को संगठित कर ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक मजबूत प्रतिरोध खड़ा किया। इनके प्रयासों ने न केवल देश में बल्कि पूरी दुनिया में एक सामाजिक और राजनीतिक बदलाव की मिसाल पेश की।
भगत सिंह, एक और प्रेरणादायक नायक, जिन्होंने अपनी कम उम्र में ही स्वतंत्रता संग्राम के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उनका साहस और उनकी क्रांतिकारी यथार्थता भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी। 23 मार्च 1931 को, देश की स्वतंत्रता के लिए उन्होंने हंसते हंसते अपने प्राण निछावर कर दिए।
सुभाष चंद्र बोस, जिन्हें नेताजी के रूप में जाना जाता है, द्वारा स्थापित ‘आजाद हिंद फौज’ ने ब्रिटिश साम्राज्य के विरोध में सशस्त्र संघर्ष किया। बोस का नारा था “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा,” जिसने लाखों भारतीयों को स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रेरित किया। उनकी साहसी गतिविधियों और अटूट दृढ़ता के कारण वे भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महान नायक के रूप में माने जाते हैं।
इसके अलावा रानी लक्ष्मीबाई, बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, सरदार वल्लभभाई पटेल, और अनेक अन्य स्वतंत्रता सेनानियों ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इन नायकों के प्रति हमारी श्रद्धांजलि और आभार हमेशा अनन्त रहेगा, क्योंकि उनकी सम्पूर्ण समर्पण और बलिदान ने ही आज हमें स्वतंत्र भारत में जीने का अवसर दिया।
भारतीय जनता का योगदान
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास उन लाखों लोगों के बगैर अधूरा है जिन्होंने इस आंदोलन को समर्थन और दिशा प्रदान की। भारतीय जनता ने न केवल बड़े पैमाने पर सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों में भाग लिया, बल्कि स्वतंत्रता के संघर्ष को अपने जीवन का अंग बना लिया। गाँव-गाँव में जागरूकता फैलाने का कार्य हो या सत्याग्रह में सक्रिय भागीदारी; हर व्यक्ति ने अपने तरीके से योगदान दिया।
यह आंदोलन महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल जैसे नेताओं के साथ-साथ उन अनगिनत आम नागरिकों और कृषकों की भी देन है जो सुबह से शाम तक कार्य करने के बावजूद स्वाधीनता की मशाल जलाए रखने में कोई कमी नहीं छोड़ी। महिलाओं ने भी अत्यधिक प्रभावी भूमिका निभाई, वे केवल घरेलू कार्यों तक सीमित न रहकर चरखा कातने और विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करने जैसे कार्यों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया।
सिविल नाफरमानी आंदोलन से लेकर दांडी मार्च तक, भारतीय जनता का समर्थन और सहयोग निर्विवाद रहा। शांतिपूर्ण प्रदर्शनों और भूख हड़तालों में लाखों लोगों का जुड़ना यह दर्शाता है कि स्वतंत्रता सिर्फ एक नारे तक सीमित नहीं थी बल्कि यह अपार संघर्ष और बलिदान का परिणाम थी। इस संघर्ष में किसानों का योगदान भी अत्यधिक महत्वपूर्ण रहा; जब-जब राष्ट्र ने उन्हें पुकारा, वे अपने खेत-खलिहान छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े।
इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पृष्ठों में जितनी कहानियाँ महान नेताओं की हैं, उतनी ही महत्वपूर्ण कहानियाँ उन अनगिनत भारतीयों की भी हैं जिन्होंने सीधे या परोक्ष रूप से इस आंदोलन में योगदान दिया। भारतीय जनता का यह योगदान न केवल स्वतंत्रता की प्राप्ति में अहम था, बल्कि इसने देश की सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक चेतना को भी नया आयाम दिया। स्वतंत्रता संग्राम की यह महान परंपरा आज भी देशवासियों के दिलों में जीवित है और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणादायक साबित होती है।
स्वतंत्रता के बाद की चुनौतियाँ
1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, भारत को अनेक सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान भारतीय समाज में असमानताएं और विभाजन गहरे हो चुके थे। सांप्रदायिक दंगे और बंटवारे के बाद फैली हिंसा ने देश को कष्टमय बना दिया था। उस समय का एक प्रमुख सामाजिक मुद्दा विस्थापितों को बसाना और शरणार्थियों को सुरक्षित स्थान मुहैया कराना था।
आर्थिक क्षेत्र में, भारत को आत्मनिर्भर बनाने की आवश्यकता थी। 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारतीय अर्थव्यवस्था कच्चे माल पर आधारित थी, जिसमें कृषिगत उत्पादों और खनिजों की प्रमुखता थी। तकनीकी विकास और औद्योगिकीकरण की कमी ने देश की अर्थव्यवस्था को कमजोर कर दिया था। इसके समाधान के लिए तत्कालीन भारतीय नेताओं ने पंचवर्षीय योजनाओं की शुरुआत की, जिसमें कृषि उत्पादकता बढ़ाने, औद्योगिकीकरण को प्रोत्साहन देने, और बुनियादी ढांचे के विकास पर जोर दिया गया।
राजनीतिक दृष्टि से, नये संवैधानिक ढांचे का निर्माण और देश को प्रजातांत्रिक शैली में स्थापित करना एक बड़ी चुनौती थी। भारतीय संविधान के निर्माण की दिशा में नेताओं के प्रयास सराहनीय थे। इस संवैधानिक ढांचे ने न केवल भारत को एक स्वायत्त, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में स्थापित किया बल्कि भविष्य के सामाजिक और आर्थिक सुधारों के लिए भी मजबूत आधार प्रदान किया।
इन सारी चुनौतियों के मध्य भारतीय जनता का धैर्य, आत्मविश्वास और सतत प्रयास देश की प्रगति में सहायक सिद्ध हुए। जनता का सहयोग और राज्य सरकारों की नीतियां स्वतंत्रता प्राप्ति के बावजूद देश को सही दिशा में अग्रसर करने में सफल रहीं। इन तमाम बाधाओं को पार करने के बाद ही भारत आज एक सफल और समृद्ध राष्ट्र के रूप में विश्व में अपनी पहचान बना पाया है।
भारत की प्रगति
स्वतंत्रता के बाद के वर्षों में भारत ने विविध क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति की है। विशेष रूप से आर्थिक सुधारों ने देश को वैश्विक पटल पर मजबूती से स्थापित किया है। 1991 में शुरू हुए उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (एलपीजी) जैसे नीतिगत प्रयासों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा दी। इसके परिणामस्वरूप, देश का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) निरंतर वृद्धि दर्ज करता रहा है। सूचना-प्रौद्योगिकी और सेवा क्षेत्र में भी भारत ने अद्वितीय उन्नति की है, जिससे रोजगार के नए अवसर सृजित हुए हैं।
वैज्ञानिक उन्नति के क्षेत्र में भी भारत ने महत्वपूर्ण छलांगें मारी हैं। इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) के मंगलयान मिशन और चंद्रयान-2 अभियान जैसे परियोजनाएं भारत की अंतरिक्ष खोज और अनुसंधान में सफलता को दर्शाती हैं। यहीं नहीं, देश ने चिकित्सा और जैव-प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में भी उल्लेखनीय उपलब्धियाँ हासिल की हैं, जिनमें कोविड-19 टीका विकास एवं उत्पादन शामिल है।
सामाजिक सुधार के क्षेत्र में, भारत का प्रयास बहुआयामी रहा है। महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा और सशक्तिकरण के लिए बेटियों के बचाव, शिक्षा और स्वस्थ जीवन के लिए ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसी योजनाएं चलाई गई हैं। इसके अतिरिक्त, स्वच्छता और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर भी जोर दिया गया है, जिसमें प्रमुखता से ‘स्वच्छ भारत अभियान’ का नाम आता है।
विभिन्न सरकारी योजनाओं और नीतियों के द्वारा ग्रामीण और शहरी समाज के विकास को एक नई दिशा मिली है। प्रधानमंत्री आवास योजना, प्रधानमंत्री जन-धन योजना और आयुष्मान भारत जैसी योजनाएं सामाजिक आर्थिक सुधार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
वैश्विक मुख्यधारा में भारत
भारत आज वैश्विक मंच पर एक प्रमुख भूमिका निभा रहा है, जिसके पीछे उसकी स्थिर विदेशी नीति और लगातार आर्थिक विकास का समर्पण है। बीते कुछ वर्षों में, भारत ने अपनी कूटनीति के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और मंचों पर अपनी एक मजबूत पहचान बनाई है। भारतीय विदेश नीति का एक प्रमुख लक्ष्य यह रहा है कि वह शांति और समृद्धि के लिए अपने पड़ोसियों और दूरवर्ती राष्ट्रों के साथ संतुलित संबंध स्थापित करे। इसके परिणामस्वरूप, भारत की सहभागिता दक्षिण एशियाई संघीय संगठन (सार्क), ब्रिक्स, और जी-20 जैसे महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में दिखाई देती है।
अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में भारत की सक्रिय भागीदारी ने न केवल वैश्विक नीति निर्धारण में उसके योगदान को मजबूत किया है बल्कि उसकी वैश्विक साख भी बढ़ाई है। भारत की सदस्यता संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अस्थाई सदस्य के तौर पर और अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी में उसकी सक्रिय भूमिका इस दिशा में प्रमुख उदाहरण हैं। इसके साथ ही, भारत ने वैश्विक स्वास्थ्य संकटों में अपनी सहायता प्रदान कर पूरे विश्व में अपनी समझदारी और मानवता की भावना का परिचय दिया है।
वहीं, वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी की भूमिका में उभर रहा है। भारत की मजबूत आर्थिक नीतियाँ और उद्यमशीलता का बढ़ता स्तर इसे विश्व के सबसे तेजी से बढ़ते हुए आर्थिक क्षेत्रों में शामिल करता है। विशेष रूप से, आईटी और सेवा क्षेत्र में भारत का निर्यात कई देशों की अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित कर रहा है। इसी के साथ, भारत का स्टार्टअप इकोसिस्टम भी तेजी से विकसित हो रहा है और अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों का ध्यान आकर्षित कर रहा है।
स्वतंत्रता दिवस समारोह
भारत में 15 अगस्त का स्वतंत्रता दिवस देशभर में अत्यंत उत्साह और गर्व के साथ मनाया जाता है। इस दिन की शुरुआत पारंपरिक रूप से दिल्ली स्थित ऐतिहासिक लाल किले पर होती है, जहाँ देश के प्रधानमंत्री राष्ट्रीय ध्वज को फहराते हैं। इसके पश्चात, प्रधानमंत्री राष्ट्र के नाम संबोधन करते हैं, जिसमें वे देश की प्रगति, चुनौतियों और भविष्य की योजनाओं पर प्रकाश डालते हैं। प्रधानमंत्री का भाषण राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी ही उत्सुकता से सुना और देखा जाता है।
झंडारोहण और प्रधानमंत्री के संबोधन के उपरांत सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इनमें विभिन्न राज्यों की सांस्कृतिक धरोहर की झलक पेश की जाती है। परेड और झाकियों के माध्यम से विभिन्न राज्यों की संस्कृति, परम्पराएँ और महत्त्वपूर्ण घटनाओं का प्रदर्शन होता है। ये परेड और झाकियाँ दर्शकों को अत्यंत आकर्षित करती हैं और देश की समृद्ध विविधता को प्रत्यक्ष रूप से सामने लाती हैं।
देशभर के स्कूलों, कॉलेजों और अन्य शैक्षणिक संस्थानों में भी इस दिन को खास अंदाज से मनाया जाता है। यहाँ भी झंडारोहण, भाषण, राष्ट्रीय गीतों का गायन और विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। बच्चों के लिए शैक्षणिक और रचनात्मक गतिविधियाँ भी आयोजित की जाती हैं, जो उनमें राष्ट्रीयता और देशप्रेम की भावना को बढ़ावा देती हैं।
इसके अलावा हर शहर, कस्बे और गाँव में स्थानीय समितियाँ और नागरिक समूह स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर विविध गतिविधियों का आयोजन करते हैं। इनमें देशभक्ति गीत, नाट्य प्रस्तुतियाँ, प्रभात फेरी और झंडा फहराना शामिल होता है। इन आयोजनों के माध्यम से लोग अपने देश के प्रति सम्मान और कृतज्ञता प्रकट करते हैं और स्वतंत्रता की भावना को जीवंत बनाए रखते हैं।
निष्कर्ष
स्वतंत्रता दिवस के इस महत्वपूर्ण अवसर पर, हमें एक राष्ट्र के रूप में अपनी यात्रा पर गर्व और आभार की भावना का मंथन करना चाहिए। यह दिन हमें न केवल हमारे महान नेताओं और शहीदों की अप्रतिम बलिदानों की याद दिलाता है, बल्कि हमें यह भी याद दिलाता है कि देश की समृद्धि और स्वतंत्रता की राह में हमारा योगदान कितना अनमोल है।
चुनौतियों का सामना करते हुए भारत ने न केवल स्वयं को एक मजबूत लोकतंत्र के रूप में स्थापित किया है, बल्कि विविधता में एकता का भी अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया है। आने वाले समय में भी इस भावना को जीवित रखने और नई ऊंचाइयों पर ले जाने का दायित्व हम सभी पर है।
हमारे सामने नई चुनौतियाँ और अवसर दोनों हैं। तकनीकी उन्नति, आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए हमें मिलकर काम करने की आवश्यकता है। यह हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक समृद्ध, सुरक्षित और समावेशी भविष्य की नींव रखें।
इस 15 अगस्त को, अपने दिलों में गर्व, सम्मान और कृतज्ञता के भाव से ओत-प्रोत करते हुए, हमें अपने देश की सेवा के प्रति एक नई प्रतिज्ञा लेनी चाहिए। छोटे से छोटे कार्य से भी बड़ा बदलाव संभव है। आइए हम सभी मिलकर इस स्वतंत्रता दिवस को एक नया अर्थ दें और अपने राष्ट्र के उत्थान में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं।
आपकी सक्रिय भागीदारी और निरंतर समर्थन से ही हमारे देश का भविष्य उज्जवल होगा। आइए देशभक्ति की भावना को हर दिल में जलाएँ और एक स्वयंसेवी, प्रेरित और सशक्त भारत के निर्माण की दिशा में समर्पण दिखाएँ।